मृदा या मिट्टी पृथ्वी की ऊपरी सतह पर मिलने
वाले असंगठित पदार्थो की ऊपरी परत हैं जो चट्टानों के विखंडन एवं वियोजन तथा वनस्पतियों
के अवसादों के योग से बनती हैं। किसी भी क्षेत्र की मृदाएं पैतृक (चट्टान), जलवायु
दशाएं (वर्षा, तापमान), ढाल की तीव्रता, वनस्पति और समय (दीर्घकालिक, अल्पकालिक)
पर निर्भर करती हैं। उ.प्र. की मिट्टियों को प्रो. वाडिया, कृष्णन एवं मुखर्जी के
वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पद दो भागों में विभाजित किया जाता हैं- (1) गंगा के
विशाल मैदान की नूतन और उप-नूतन मिट्टियां तथा (2) दक्षिण पठार की प्राचीन रवेदार
और विंध्यन शैलीय या बुंदेलखंडीय मिट्टियां ।
गंगा के विशाल मैदान की मृदाएं
इस क्षेत्र की लगभग सम्पूर्ण मृदा को दो वर्गो में
विभाजित किया जाता हैं :-
(1)
बांगर या पुरानी जलोढ
मृदा
(2)
खादर या नवीन जलोढ मृदा
Ø प्राचीनतम कॉप मिट्टी क्षेत्रों को बांगर कहते
हैं।
Ø नवीन कॉप मिट्टी वाले क्षेत्रों को खादर
कहते हैं।
Ø बांगर मिट्टी (परिपक्व) में फॉस्फोरस एवं चूने की पर्याप्त मात्रा पाई
जाती हैं जबकि नाइट्रोजन, पोटाश, जीवांश आदि पदार्थो की कमी पाई जाती हैं।
Ø बांगर मिट्टी को दोमट, मटियार, बलुई दोमट, भूंड या पुरातन कॉप मिट्टी के
नाम से भी जाना जाता हैं।
Ø उ.प्र. के पूर्वी भाग में बागर मिट्टी को उपरहार मिट्टी भी कहा जाता
हैं।
Ø खादर मिट्टी नदियों के बाढ वाले मैदानों में पाई जाती हैं।
Ø खादर मिट्टी हल्के रंग वाली छिद्रयुक्त तथा महीन कणों वाली होती हैं।
Ø खादर मिट्टी बांगर की अपेक्षा अधिक उर्वरा शक्ति वाली होती हैं।
Ø खादर मिट्टी में सामान्यत: चूना, पोटाश, मैग्नीशियम तथा जीवांशों की
अधिकता जबकि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं ह्रूामस पदार्थों की कमी पाई जाती हैं।
Ø खादर मिट्टी को नूतन कॉप, बलुआ, सिल्ट बलुआ, मटियार दोमट आदि नामों से
जाना जाता हैं।
Ø भाबर पवर्तपदीय क्षेत्र हैं, यहां की मिट्टी मोटी बालुओं तथा कंकड और पत्थरों
से निर्मित बहुत छिछली हैं। इस क्षेत्र में नदियां लुप्त हो जाती हैं।
Ø भाबर के समानांतर निचले भाग में तराई क्षेत्र विस्तारित हैं। यहां की मृदा
उपजाऊ, नम, दलदलीं और समतल हैं। इस मृदा में गन्ना एवं धान की अच्छी पैदावार
होती हैं।
Ø उ.प्र. के गंगा-यमुना दोआब एवं गंगा-रामगंगा दोआब क्षेत्रों में जलोढ एवं
कॉप मिट्टी का विस्तार हैं।
Ø उ.प्र. में जलोढ एवं दोमट मिट्टी सर्वाधिक क्षेत्र पर पाई जाती हैं।
Ø उ.प्र. में दोमट एवं बलुई मिट्टी को क्षेत्रीय भाषा में सिक्टा, करियाल
एवं धनका भी कहते हैं।
Ø इस क्षेत्र में बांगर मिट्टी ऊंचे मैदानी भागों में पाई जाती हैं जहां बाढ
के समय नदियों का जल नहीं पहुंच पाता हैं।
Ø गंगा-यमुना तथा उनकी सहायक नदियों के बाढ वाले क्षेत्रों में प्लाइस्टोसीन
युग में निर्मित बलुई मिट्टी के 10-12 फीट ऊंचे टीलों को भूड कहते हैं।
Ø भूड हल्की दोमट एवं मिश्रित बलुई मिट्टी होती हैं।
बुंदेलखंडीय मृदा
उ.प्र. के दक्षिणी पठार की मिट्टियों को बुंदेलखंडीय मिट्टी कहते
हैं।
Ø इस क्षेत्र में भोंटा, माड (मार), कावड, पडवा (परवा), राकड आदि मिट्टियां
पायी जाती हैं।
Ø इस क्षेत्र की काली मृदा को करेल कपास अथवा रेगुर आदि नामों से भी जाना
जाता हैं।
Ø प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर जिलों में काली मृदा का विस्तार
होने के कारण चना, गेहॅू, अरहर एवं तिलहन प्रमुख उपजें हैं।
Ø भॉटा मिट्टी विंध्य पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
Ø माड (मार) मिट्टी, काली मिट्टी या रेगुर
मिट्टी के समान चिकनी होती हैं।
Ø माड (मार) मिट्टी में सिलिकेट, लोहा एवं एल्युमीनियम
खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।
Ø मांट मिट्टी उ.प्र. के पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाती
हैं। इस मिट्टी में चूना अधिक होता हैं।
मृदा
|
अन्य/स्थानीय नाम
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खादर
|
नीवन जलोढ, कछारी,
दोमट मटियार, सिल्ट बलुआ
|
बांगर
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पुरानी जलोढ, उपहार मृदा,
दोमट, मटियार बलुई-दोमट
|
ऊसर भूमि (लवणीय तथा
क्षारीय)
|
रेह, बंजर तथा कल्लर
|
बलुई मिट्टी (ऊंचे
टीलों को)
|
भूड
|
काली मृदा
|
रेगुर, फरेल या कपास
मृदा
|
बुंदेलखंड क्षेत्र की
मिट्टियां
|
लाल मृदा, परवा
(पडवा), माड (मार), राकर (राकड) मृदा, भोंटा मृदा।
|
Ø पडवा मिट्टी उ.प्र. के हमीरपुर, जालौन और यमुना नदी के
ऊपरी जिलों में पाई जाती हैं।
Ø पडवा मिट्टी हल्के लाल रंग की होती हैं।
Ø राकड मिट्टी उ.प्र. के दक्षिण पर्वतीय एवं पठारी
ढलानों पर पाई जाने वाली मिट्टी हैं।
Ø लाल मिट्टी उ.प्र. के मिर्जापुर, सोनभद्र जिलों में
पाई जाती हैं।
Ø लाल मिट्टी का निर्माण बालूमय लाल शैलों के अपक्षय से हुआ हैं।
Ø लाल मिट्टी का विस्तार वेतवा एवं धसान नदियों के जलप्लावित क्षेत्रों में
भी पाया जाता हैं।
Ø लाल मिट्टी में नाइट्रोजन, जीवांश, फॉस्फोरस एवं चूना खनिजों की कमी पाई
जाती हैं।
Ø लाल मिट्टी में गेहॅू, चना एवं दाल आदि फसलें उगाई जाती हैं।
ऊसर एवं रेह मिट्टी
Ø उ.प्र. के अलीगढ, मैनपुरी, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव, एटा, इटावा, रायबरेली
एवं लखनऊ जिलों में पाई जाती हैं।
Ø रेहयुक्त क्षारीय ऊसर भूमि का उत्तर प्रदेश में अधिक विस्तार हैं।
Ø उत्तर प्रदेश की 1.37 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र की मृदा लवण प्रभावित हैं।
Ø बंजर तथा मांट नामक मृदा उ.प्र. के गोरखपुर, बस्ती,
महराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थ नगर एवं गोंडा जिलों में पाई जाती हैं।
Ø बंजर मिट्टी चिकनी और बलुई चिकनी दोनों प्रकार की होती हैं इसमें चूना
अपेक्षाकृत कम होता हैं।
Ø जलप्लावित नदी के किनारे पाई जाने वाली मिट्टी को उ.प्र. में ढूंह
के नाम से जाना जाता हैं।
Ø उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्व में स्थित कुशीनगर जिले की मिट्टी को स्थानीय
भाषा में ‘भाट’ कहा जाता हैं।
Ø इस मिट्टी में मोटे अनाज वाली फसलें उगाई जाती हैं।
Ø उ.प्र. के उत्तर-पश्चिम भाग की मिट्टी में फॉस्फेट खनिज की कमी
पाई जाती हैं।
Ø उ.प्र. के जौनपुर, आजमगढ तथा मऊ जनपदों की मृदा में पोटाश की कमी
पाई जाती हैं।
मृदा अपरदन
जल बहाव अथवा वायु के वेग अथवा हिम के पिघलने से एक स्थान की
मिट्टी का अन्यत्र स्थान पर चला जाना मृदा अपरदन कहलाता हैं।
Ø उत्तर प्रदेश में वायु अपरदन प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में एवं जलीय
अपरदन पूर्वी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक होता हैं।
Ø चम्बल नदी अधिग्रहण क्षेत्र में अवनालिका अपरदन (Gully Erosion) सर्वाधिक होता हैं, जिससे उ.प्र. का इटावा जिला विशेष रूप से प्रभावित हैं।
Ø इसके कारण ही आगरा, इटावा और जालौन जिलों में बीहड पाए जाते हैं।
Ø उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में अवनालिका अपरदन, दक्षिणी क्षेत्र में
रिल अपरदन (Rill
Erosion) तथा पूर्वी एवं उत्तरी
क्षेत्र में परत अपरदन (Sheet
Erosion) विशेष रूप से प्रभावी
हैं।
Ø उ.प्र. में मृदा अपरदन के मुख्य कारण मानसून वर्षा की प्रकृति, वनों का अभाव
तथा ढाल की तीव्रता आदि हैं।
Ø वायु अपरदन से उ.प्र. के सर्वाधिक
प्रभावित जिले मथुरा एवं आगरा हैं।
Ø जलीय अपरदन से उ.प्र. का सर्वाधिक
प्रभावित क्षेत्र हिमालय का तराई प्रदेश हैं।
Ø प्रदेश के अलीगढ, मैनपुरी, कानपुर, उन्नाव, एटा, इटावा, रायबरेली, सुल्तानपुर,
प्रतापगढ, जौनपुर, और इलाहाबाद जिलों में अधिक सिंचाई एवं उर्वरकों के इस्तेमाल
से लगभग 10 प्रतिशत भूमि ऊसर हो चुकी हैं।
Ø प्रदेश के पश्चिमी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में लवणीय या क्षारीय मृदा पाई
जाती हैं जबकि प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों (तराई भागों में) के कुछ हिस्सों में
अम्लीय मृदा पाई जाती हैं।
Ø उ.प्र. में कुल बंजर भूमि 10988.59 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत हैं,
जो कि प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 4.56 प्रतिशत हैं।
Ø सर्वाधिक बंजर भूमि (wasteland) राजस्थान राज्य में
तथा सबसे कम गोवा में हैं।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख मिट्टियां
(1)
पर्वतपदीय मृदाएं
(2)
तराई मृदाएं
(3)
जलोढ मृदाएं
(4)
लाल और पीली मृदाएं
(5)
मिश्रित लाल एवं काली
मृदाएं
(6)
मध्यम काली मृदाएं
(7)
कैल्शियम युक्त मृदाएं
(8)
लवण प्रभावित मृदाएं
(9)
लालबुलईमृदाएं
UP GK for LEKHPAL, VDO, POLICE, EXAMS ( उत्तर प्रदेश की मिट्टियां )
Reviewed by Unknown
on
July 25, 2018
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